तंहाई का इक और मज़ा लूट रहा हूँ
मेहमान मिरे घर में बहुत आए हुए हैं
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दिलों में फ़र्क़ है तो गुफ़्तुगू से कुछ नहीं होगा
निकाल ज़ात से बाहर निकाल तन्हाई
हालात न बदलें तो इसी बात पे रोना
दूसरी बातों में हम को हो गया घाटा बहुत
पहले हुआ जो करते थे हम वो नहीं रहे
सर्दी भी ख़त्म हो गई बरसात भी गई
यहाँ तो क़ाफ़िले भर को अकेला छोड़ देते हैं
'शुजा' वो ख़ैरियत पूछें तो हैरत में न पड़ जाना
जो क़िस्सा था ख़ुद से छुपाया हुआ
ज़िंदगी भर ज़िंदा रहने की यही तरकीब है
ये दुनिया-दारी और इरफ़ान का दावा 'शुजा-ख़ावर'
वस्ल हुआ पर दिल में तमन्ना