'शुजा' वो ख़ैरियत पूछें तो हैरत में न पड़ जाना
परेशाँ करने वाले ख़ैर-ख़्वाहों में भी होते हैं
Faiz Ahmad Faiz
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सर्दी भी ख़त्म हो गई बरसात भी गई
मेरा दिल हाथों में लो तो क्या तुम्हारा जाएगा
यहाँ तो क़ाफ़िले भर को अकेला छोड़ देते हैं
बरपा तिरे विसाल का तूफ़ान हो चुका
जिन को क़ुदरत है तख़य्युल पर उन्हें दिखता नहीं
तकल्लुफ़ छोड़ कर मेरे बराबर बैठ जाएगा
दिल में नफ़रत हो तो चेहरे पे भी ले आता हूँ
वस्ल हुआ पर दिल में तमन्ना
घर में बेचैनी हो तो अगले सफ़र की सोचना
कहाँ कहाँ है ख़ुदा जाने राब्ता दिल का
सभी ज़िंदगी पे फ़रेफ़्ता कोई मौत पर नहीं शेफ़्ता
ये दुनिया-दारी और इरफ़ान का दावा 'शुजा-ख़ावर'