'शुजा' मौत से पहले ज़रूर जी लेना
ये काम भूल न जाना बड़ा ज़रूरी है
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ज़िंदगी भर ज़िंदा रहने की यही तरकीब है
यहाँ तो क़ाफ़िले भर को अकेला छोड़ देते हैं
उधर तो दार पर रक्खा हुआ है
ख़ुद फ़रिश्ते तो नहीं हैं जो मुझे ले जा रहे हैं
तकल्लुफ़ छोड़ कर मेरे बराबर बैठ जाएगा
उस को न ख़याल आए तो हम मुँह से कहें क्या
दो चार नहीं सैंकड़ों शेर उस पे कहे हैं
इस ए'तिबार से बे-इंतिहा ज़रूरी है
पार उतरने के लिए तो ख़ैर बिल्कुल चाहिए
शिद्दत-ए-इंतिज़ार काम आई
यहाँ वहाँ की बुलंदी में शान थोड़ी है
आप इधर आए उधर दीन और ईमान गए