सर्दी भी ख़त्म हो गई बरसात भी गई
और इस के साथ गर्मी-ए-जज़्बात भी गई
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पार उतरने के लिए तो ख़ैर बिल्कुल चाहिए
ज़िंदगी भर ज़िंदा रहने की यही तरकीब है
दिल में नफ़रत हो तो चेहरे पे भी ले आता हूँ
तकल्लुफ़ छोड़ कर मेरे बराबर बैठ जाएगा
घर में बेचैनी हो तो अगले सफ़र की सोचना
दश्त को जा तो रहे हो सोच लो कैसा लगेगा
उस बेवफ़ा का शहर है और वक़्त-ए-शाम है
यहाँ तो क़ाफ़िले भर को अकेला छोड़ देते हैं
जैसा मंज़र मिले गवारा कर
ख़ुदा ने चाहा तो सब इंतिज़ाम कर देंगे
उस के बयान से हुए हर दिल अज़ीज़ हम
यहाँ वहाँ की बुलंदी में शान थोड़ी है