जिन को क़ुदरत है तख़य्युल पर उन्हें दिखता नहीं
जिन की आँखें ठीक हैं उन को तख़य्युल चाहिए
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या तो जो ना-फ़हम हैं वो बोलते हैं इन दिनों
ख़ुदा ने चाहा तो सब इंतिज़ाम कर देंगे
कहाँ कहाँ है ख़ुदा जाने राब्ता दिल का
पार उतरने के लिए तो ख़ैर बिल्कुल चाहिए
जो क़िस्सा था ख़ुद से छुपाया हुआ
उधर तो दार पर रक्खा हुआ है
दर्द जाएगा तो कुछ कुछ जाएगा पर देखना
उस बेवफ़ा का शहर है और वक़्त-ए-शाम है
सभी ज़िंदगी पे फ़रेफ़्ता कोई मौत पर नहीं शेफ़्ता
कुछ नहीं बोला तो मर जाएगा अंदर से 'शुजाअ'
चलो ये तो हादसा हो गया कि वो साएबान नहीं रहा
हज़ार रंग में मुमकिन है दर्द का इज़हार