इसी पर ख़ुश हैं कि इक दूसरे के साथ रहते हैं
अभी तन्हाई का मतलब नहीं समझे हैं घर वाले
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Gulzar
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Rahat Indori
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(536) Peoples Rate This
दिन के पास कहाँ जो हम रातों में माल बनाते हैं
यहाँ तो क़ाफ़िले भर को अकेला छोड़ देते हैं
दो चार नहीं सैंकड़ों शेर उस पे कहे हैं
उस के बयान से हुए हर दिल अज़ीज़ हम
तकल्लुफ़ छोड़ कर मेरे बराबर बैठ जाएगा
अब तेरे लिए हैं न ज़माने के लिए हैं
चेहरे पे थोड़ी रक्खी है
मिरे हालात को बस यूँ समझ लो
उस को न ख़याल आए तो हम मुँह से कहें क्या
छोड़िए बाक़ी भी क्या रक्खा है उन के क़हर में
दोस्त का घर और दुश्मन का पता मालूम है
घर में बेचैनी हो तो अगले सफ़र की सोचना