हम सूफ़ियों का दोनों तरफ़ से ज़ियाँ हुआ
इरफ़ान-ए-ज़ात भी न हुआ रात भी गई
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हालत उसे दिल की न दिखाई न ज़बाँ की
इसी पर ख़ुश हैं कि इक दूसरे के साथ रहते हैं
इस तरह पहुँचेगा कैसे पाया-ए-तकमील को
बरपा तिरे विसाल का तूफ़ान हो चुका
उस के आने पे भी नहीं आई
ज़िंदगी भर ज़िंदा रहने की यही तरकीब है
छोड़िए बाक़ी भी क्या रक्खा है उन के क़हर में
दूसरी बातों में हम को हो गया घाटा बहुत
जो क़िस्सा था ख़ुद से छुपाया हुआ
गरचे बादल पानी बरसाता हुआ घर घर फिरा
रखते हैं अपने ख़्वाबों को अब तक अज़ीज़ हम
तभी आएगी लबों पर मिरे दिल की बात खुल के