हज़ार रंग में मुमकिन है दर्द का इज़हार
तिरे फ़िराक़ में मरना ही क्या ज़रूरी है
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मेरा दिल हाथों में लो तो क्या तुम्हारा जाएगा
जो तुम से पहले आए थे उन की कारिस्तानी देखो
जैसा मंज़र मिले गवारा कर
औरों से पूछिए तो हक़ीक़त पता चले
रुख़ हवा का ये कि जैसे उस को आसानी पड़े
तभी आएगी लबों पर मिरे दिल की बात खुल के
रखते हैं अपने ख़्वाबों को अब तक अज़ीज़ हम
ख़ुदा ने चाहा तो सब इंतिज़ाम कर देंगे
'शुजा' वो ख़ैरियत पूछें तो हैरत में न पड़ जाना
आप इधर आए उधर दीन और ईमान गए
'शुजा' मौत से पहले ज़रूर जी लेना
हालत उसे दिल की न दिखाई न ज़बाँ की