घर में बेचैनी हो तो अगले सफ़र की सोचना
फिर सफ़र नाकाम हो जाए तो घर की सोचना
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इस तरह पहुँचेगा कैसे पाया-ए-तकमील को
पार उतरने के लिए तो ख़ैर बिल्कुल चाहिए
या तो जो ना-फ़हम हैं वो बोलते हैं इन दिनों
'शुजा' मौत से पहले ज़रूर जी लेना
हालत उसे दिल की न दिखाई न ज़बाँ की
दिलों में फ़र्क़ है तो गुफ़्तुगू से कुछ नहीं होगा
निकाल ज़ात से बाहर निकाल तन्हाई
दिन के पास कहाँ जो हम रातों में माल बनाते हैं
जैसा मंज़र मिले गवारा कर
शिद्दत-ए-इंतिज़ार काम आई
दिल की बातें दूसरों से मत कहो लुट जाओगे
रखते हैं अपने ख़्वाबों को अब तक अज़ीज़ हम