चारागरी की बात किसी और से करो
अब हो गए हैं यारो पुराने मरीज़ हम
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रुख़ हवा का ये कि जैसे उस को आसानी पड़े
दश्त को जा तो रहे हो सोच लो कैसा लगेगा
उस के आने पे भी नहीं आई
घर में बेचैनी हो तो अगले सफ़र की सोचना
लोगों ने हम को शहर का क़ाज़ी बना दिया
जैसा मंज़र मिले गवारा कर
असर में देखिए अब कौन कम निकलता है
इसी पर ख़ुश हैं कि इक दूसरे के साथ रहते हैं
तभी आएगी लबों पर मिरे दिल की बात खुल के
सातों आलम सर करने के बा'द इक दिन की छुट्टी ले कर
दिन के पास कहाँ जो हम रातों में माल बनाते हैं
जो तुम से पहले आए थे उन की कारिस्तानी देखो