आप इधर आए उधर दीन और ईमान गए
ईद का चाँद नज़र आया तो रमज़ान गए
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औरों से पूछिए तो हक़ीक़त पता चले
चलो ये तो हादसा हो गया कि वो साएबान नहीं रहा
उस के आने पे भी नहीं आई
हालात न बदलें तो इसी बात पे रोना
पहले हुआ जो करते थे हम वो नहीं रहे
पार उतरने के लिए तो ख़ैर बिल्कुल चाहिए
ये दुनिया-दारी और इरफ़ान का दावा 'शुजा-ख़ावर'
या तो जो ना-फ़हम हैं वो बोलते हैं इन दिनों
उस को न ख़याल आए तो हम मुँह से कहें क्या
जैसा मंज़र मिले गवारा कर
हज़ार रंग में मुमकिन है दर्द का इज़हार
'शुजा' वो ख़ैरियत पूछें तो हैरत में न पड़ जाना