शिद्दत-ए-इंतिज़ार काम आई
उन की तहरीर मेरे नाम आई
दिन में हम ने भुला दिया था तुझे
रात लेने को इंतिक़ाम आई
सुब्ह मरकज़ बनी उमीदों का
शाम मायूसियों के काम आई
देखते देखते तिरा चेहरा
ख़ुद-ब-ख़ुद क़ुदरत-कलाम आई
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चलो ये तो हादसा हो गया कि वो साएबान नहीं रहा
उधर तो दार पर रक्खा हुआ है
ख़ुदा को आज़माना चाहिए था
दूसरी बातों में हम को हो गया घाटा बहुत
इस तरह पहुँचेगा कैसे पाया-ए-तकमील को
असर में देखिए अब कौन कम निकलता है
रुख़ हवा का ये कि जैसे उस को आसानी पड़े
विज्दान में वो आया इल्हाम हुआ मुझ को
औरों से पूछिए तो हक़ीक़त पता चले
दिल में नफ़रत हो तो चेहरे पे भी ले आता हूँ
सब का ही नाम लेते हैं इक तुझ को छोड़ कर
निकाल ज़ात से बाहर निकाल तन्हाई