रखते हैं अपने ख़्वाबों को अब तक अज़ीज़ हम
हालाँकि इस में हो गए दिल के मरीज़ हम
उस के बयान से हुए हर-दिल-अज़ीज़ हम
ग़म को समझ रहे थे छुपाने की चीज़ हम
ये काएनात तो किसे मिलती है छोड़िए
अपनी ही ज़ात से न हुए मुस्तफ़ीज़ हम
चारागरी की बात किसी और से करो
अब हो गए हैं यारो पुराने मरीज़ हम