ख़ुद फ़रिश्ते तो नहीं हैं जो मुझे ले जा रहे हैं
ख़ुद फ़रिश्ते तो नहीं हैं जो मुझे ले जा रहे हैं
बंदे मुझ को क्यूँ ख़ुदा के सामने ले जा रहे हैं
दिल जिगर शाहों के आगे किस लिए ले जा रहे हैं
रुत क़सीदों की है और हम मरसिए ले जा रहे हैं
हम भी दो इक शेर ले चलते हैं तेरे चश्म ओ लब से
फूल भी ख़ुशबू तुझी से माँग के ले जा रहे हैं
कंधा देते चल रहे हैं रास्ते वालों को भी हम
अपनी मय्यत को भी हम किस शान से ले जा रहे हैं
आज पहली बार तौबा का इरादा हो रहा है
शैख़-साहिब आज हम को मय-कदे ले जा रहे हैं
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