हालत उसे दिल की न दिखाई न ज़बाँ की
हालत उसे दिल की न दिखाई न ज़बाँ की
ख़ैर उस ने न की बात तो हम ने भी कहाँ की
पहले तो हँसा ज़ोर से फिर आह-ओ-फ़ुग़ाँ की
मस्ती में क़लंदर ने बड़ी दूर की हाँ की
अल्लाह का बंदा कोई घर से नहीं निकला
तफ़्सीर सभी करते रहे कौन-ओ-मकाँ की
एक उस का सरापा है कि बस में नहीं आता
क्या हो गई हालत मिरे अंदाज़-ए-बयाँ की
एक एक सितमगर को तसव्वुर में बुला कर
शमशीर-ए-ज़बाँ हम ने भी कल ख़ूब रवाँ की
तूफ़ान-ए-मआ'नी मिरे हर लफ़्ज़ के पीछे
तेज़ी है हर इक शे'र में दिल्ली की ज़बाँ की
सहरा-ए-अदम का भी 'शुजा' ख़ूब मज़ा है
तुम सोचते रहते हो फ़क़त गुलशन-ए-जाँ की
(465) Peoples Rate This