Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_7f26ae054200464d1da03025d36e8b4e, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
बहता है कोई ग़म का समुंदर मिरे अंदर - शोज़ेब काशिर कविता - Darsaal

बहता है कोई ग़म का समुंदर मिरे अंदर

बहता है कोई ग़म का समुंदर मिरे अंदर

चलते हैं तिरी याद के ख़ंजर मिरे अंदर

कोहराम मचा रहता है अक्सर मिरे अंदर

चलती है तिरे नाम की सरसर मिरे अंदर

गुमनाम सी इक झील हूँ ख़ामोश फ़रामोश

मत फेंक अरे याद के कंकर मिरे अंदर

जन्नत से निकाला हुआ आदम हूँ मैं आदम

बाक़ी वही लग़्ज़िश का है उंसुर मिरे अंदर

कहते हैं जिसे शाम-ए-फ़िराक़ अहल-ए-मोहब्बत

ठहरा है इसी शाम का मंज़र मिरे अंदर

आया था कोई शहर-ए-मोहब्बत से सितमगर

फिर लौट गया आग जला कर मिरे अंदर

एहसास का बंदा हूँ मैं इख़्लास का शैदा

हरगिज़ नहीं हिर्स-ओ-हवस ज़र मिरे अंदर

कैसे भी हों हालात निमट लेता हूँ हँस कर

संगीन नताएज का नहीं डर मिरे अंदर

मैं पूरे दिल-ओ-जान से हो जाता हूँ उस का

कर लेता है जब शख़्स कोई घर मिरे अंदर

मैं क्या हूँ मिरी हस्ती है मज्मुआ-ए-अज़्दाद

तरतीब में है कौन सा जौहर मिरे अंदर

कुढ़ता है कभी दिल कभी रुक जाती हैं साँसें

हर वक़्त बपा रहता है महशर मिरे अंदर

हम-शक्ल मिरा कौन है हम-ज़ाद-ओ-हमराज़

रहता है कोई मुझ सा ही पैकर मिरे अंदर

जब जब कोई उफ़्ताद पड़ी खुल गया 'काशिर'

इल्हाम का इक और नया दर मिरे अंदर

(607) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Shozeb Kashir. is written by Shozeb Kashir. Complete Poem in Hindi by Shozeb Kashir. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.