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मालूम नहीं क्यूँ - शोरिश काश्मीरी कविता - Darsaal

मालूम नहीं क्यूँ

यूँ गर्दिश-ए-अय्याम है मालूम नहीं क्यूँ

रिंदों का लहू आम है मालूम नहीं क्यूँ

मुफ़लिस है तो इक जिंस-ए-फ़रोमाया है ला-रैब

मुख़्लिस है तो नाकाम है मालूम नहीं क्यूँ

तोहमत के सज़ा-वार फ़क़ीहान-ए-हरम हैं

मुल्ला यहाँ बदनाम है मालूम नहीं क्यूँ

अब ख़ून के धब्बे हैं मुदीरों की क़बा पर

ख़ामा दम-ए-समसाम है मालूम नहीं क्यूँ

ख़ून-ए-रग-ए-इस्लाम से ज़हराब ओ सुबू तक

इबहाम ही इबहाम है मालूम नहीं क्यूँ

हर बात पे ताज़ीर है हर क़ौल पे ज़ंजीर!

हर शाख़ पे इक दाम है मालूम नहीं क्यूँ

जम्हूर की यलग़ार से हर क़स्र-ए-शही में

कोहराम ही कोहराम है मालूम नहीं क्यूँ

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In Hindi By Famous Poet Shorish Kashmiri. is written by Shorish Kashmiri. Complete Poem in Hindi by Shorish Kashmiri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.