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इक़बाल से हम-कलामी - शोरिश काश्मीरी कविता - Darsaal

इक़बाल से हम-कलामी

कल अज़ान-ए-सुब्ह से पहले फ़ज़ा-ए-क़ुद्स में

मैं ने देखा कुछ शनासा सूरतें हैं हम-नशीं

थे हकीम-ए-शर्क़ से शैख़-ए-मुजद्दिद हम-कलाम

गोश-बर-आवाज़ सब दानिश-वरान-ए-इल्म-ओ-दीं

बुल-कलाम-'आज़ाद' से 'ग़ालिब' थे मसरूफ़-ए-सुख़न

'मीर' ओ 'मोमिन' दौर-ए-हाज़िर की ग़ज़ल पे नुक्ता-चीं

इस से कुछ हट कर गुलाबी शाख़-चों की छाँव में

थे वलीउल्लाह के फ़रज़ंद नुक्ता-आफ़रीं

ईस्तादा सर्व के साए में थे मौला-ए-रूम

जिन के फ़र्मूदात में मुज़्मर हैं आयात-ए-मुबीं

सोच में डूबे हुए थे 'हाली'-ए-दरवेश-ख़ू

बाँध कर बैठे हल्क़ा शिबली-ए-अहद-आफ़रीं

मैं ने बढ़ कर मुर्शिद-ए-इक़बाल से ये अर्ज़ की

आप को हम तीरा-बख़्तों की ख़बर है या नहीं

दिल-शिकस्ता हो के फ़रमाया मुझे मालूम है

बे-यद-ए-बैज़ा है पीरान-ए-हरम की आस्तीं

सल्तनत ले कर ख़ुदा ओ मुस्तफ़ा के नाम पर

अब ख़ुदा ओ मुस्तफ़ा की राह पर कोई नहीं

है अभी शहबाज़ की ग़ैरत पर कर्गस ख़ंदा-ज़न

''है वही सरमाया-दारी बंदा-ए-मोमिन का दीं''

इस से बढ़ कर और क्या फ़िक्र ओ अमल का इंक़लाब

''पादशाहों की नहीं अल्लाह की है ये ज़मीं''

कौन समझाए अँधेरी रात को आईन-ए-महर

वाए बद-बख़्ती कि ख़ुद मोमिन है महरूम-ए-यक़ीं

ख़ून दे कर ख़ाना-ए-सय्याद को रौशन करो

जाओ मश्रिक के ख़राब-आबाद को रौशन करो

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In Hindi By Famous Poet Shorish Kashmiri. is written by Shorish Kashmiri. Complete Poem in Hindi by Shorish Kashmiri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.