हिज्र ओ विसाल
ख़ुद अपने दिल का ख़ून फ़ज़ा में उछाल के
मज़मूँ लिखे हैं हम ने फ़िराक़ ओ विसाल के
कुछ सानेहों की याद है उनवान-ए-रोज़-ओ-शब
कुछ हादसे हैं नोक-ए-ज़बाँ माह ओ साल के
इक ना-तमाम दर्द शरीक-ए-चमन रहा
शाख़ों पे कोंपलों की नक़ाबें उजाल के
सेहन-ए-हरम से अंजुमन-ए-मय-फ़रोश तक
दो-गाम फ़ासला है ज़रा देख-भाल के
पछता रहे हैं नग़्मा-सरायान-ए-फ़स्ल-ए-गुल
बज़्म-ए-चमन से सर्व-ओ-समन को निकाल के
हम ने किया है गर्दिश-ए-दौराँ को पाएमाल
हम ने सहे हैं ज़ख़्म ज़माने की चाल के
'शोरिश' ज़माना हम से मुआफ़िक़ न हो सका
हम लोग हैं चमन में पुराने ख़याल के
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