Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_2f9aad53454c334b95e075b106c1e2ef, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
मैं जब्हा सा हूँ उस दर-ए-आली-मक़ाम का - शोला अलीगढ़ी कविता - Darsaal

मैं जब्हा सा हूँ उस दर-ए-आली-मक़ाम का

मैं जब्हा सा हूँ उस दर-ए-आली-मक़ाम का

काबा जहाँ जवाब न पाए सलाम का

सिक्का रवाँ है किस बुत-ए-महशर-ख़िराम का

नक़्श-ए-क़दम नगीं है क़यामत के नाम का

क्या पास-ए-ग़ैर-ए-क़स्द है गर क़त्ल-ए-आम का

इक मुर्दा दूर रख दो मसीहा के नाम का

ऐ रह-रवाँ-ए-मंज़िल-ए-मक़्सूद मरहबा

चमका कलस वो रौज़ा-ए-दारुस-सलाम का

ख़ंजर सँभालिये प-ए-तस्लीम ख़म हैं हम

गर्दन जवाब ले के उठेगी सलाम का

ग़श कैसा मैं तो तर्ज़-ए-तकल्लुम पे मर गया

मूसा ने कुछ भी लुत्फ़ न पाया कलाम का

मुझ से हुआ है वादा-ए-रोज़-ए-जज़ा अभी

देते हो क्या जवाब अदू के पयाम का

ऐ 'शोला' कह दो बुलबुल-ए-ख़ुल्द-ए-बरीं से अब

गुल-दस्ता बाँध ले मेरे रंगीं कलाम का

(631) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Shola Aligarhi. is written by Shola Aligarhi. Complete Poem in Hindi by Shola Aligarhi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.