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दिल की इक हर्फ़-ओ-हिकायात है ये भी न सही - शोला अलीगढ़ी कविता - Darsaal

दिल की इक हर्फ़-ओ-हिकायात है ये भी न सही

दिल की इक हर्फ़-ओ-हिकायात है ये भी न सही

गर मिरी बात में कुछ बात है ये भी न सही

ईद को भी वो नहीं मिलते हैं मुझ से न मिलें

इक बरस दिन की मुलाक़ात है ये भी न सही

दिल में जो कुछ है तुम्हारे नहीं पिन्हाँ मुझ से

ज़ाहिरी लुत्फ़ ओ मुदारात है ये भी न सही

ज़िंदगी हिज्र में भी यूँ ही गुज़र जाएगी

वस्ल की एक ही गर रात है ये भी न सही

मेरी तुर्बत पे लगाते नहीं ठोकर न लगाओ

ये ही बस उन की करामात है ये भी न सही

काट सकते हैं गला ख़ुद भी न कीजे हमें क़त्ल

आप के हाथ में इक बात है ये भी न सही

क़त्ल-ए-क़ासिद पे कमर बाँधी है 'शोला' उस ने

ख़त किताबत की मुलाक़ात है ये भी न सही

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In Hindi By Famous Poet Shola Aligarhi. is written by Shola Aligarhi. Complete Poem in Hindi by Shola Aligarhi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.