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दिल की बिसात क्या थी जो सर्फ़-ए-फ़ुग़ाँ रहा - शोला अलीगढ़ी कविता - Darsaal

दिल की बिसात क्या थी जो सर्फ़-ए-फ़ुग़ाँ रहा

दिल की बिसात क्या थी जो सर्फ़-ए-फ़ुग़ाँ रहा

घर में ज़रा सी आग का कितना धुआँ रहा

शब भर ख़याल-ए-गेसू-ए-अम्बर-फ़िशाँ रहा

महका हुआ शमीम से सारा मकाँ रहा

क्या क्या न काविशों पे मिरी आसमाँ रहा

बिजली गिराई मुझ पे न जब आशियाँ रहा

महशर भी कोई दर्द है जो उठ के रह गया

शिकवा भी कोई ग़म है जो दिल में निहाँ रहा

ख़ुर्शीद आसमाँ पे रहा तू ज़मीं पे है

मीज़ान-ए-हुस्न में तिरा पल्ला गिराँ रहा

जीने में क्या मज़ा जो नहीं मौत का यक़ीं

मरने में लुत्फ़ क्या है जो वो बद-गुमाँ रहा

कसरत हिजाब-ए-दीदा-ए-आरिफ़ कभी नहीं

ज़र्रों में एक मेहर का जल्वा अयाँ रहा

बीमार-ए-हिज्र मौत से उठ कर लिपट गया

वादे पे आया जब कोई तेरा गुमाँ रहा

दिल भी गया जिगर भी गया जान भी गई

मैं फिर भी देखता ही तिरी शोख़ियाँ रहा

ऐ 'शोला' क्या तबीअत-ए-नाज़ुक पे ज़ोर दूँ

क़द्र-ए-सुख़न रही न कोई क़द्र-दाँ रहा

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In Hindi By Famous Poet Shola Aligarhi. is written by Shola Aligarhi. Complete Poem in Hindi by Shola Aligarhi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.