ज़िंदगी तुझ पे गिराँ है तू मरेगा कैसे
ज़िंदगी तुझ पे गिराँ है तू मरेगा कैसे
जिस को रोना नहीं आता वो हँसेगा कैसे
मेरी आँखों में कोई अश्क न होंटों पे ग़ज़ल
दास्तान-ए-ग़म-ए-दिल कोई सुनेगा कैसे
हाथ शल हो गए दिल दर्द से महरूम हुआ
पर्दा छोड़ा है जो उस ने वो हटेगा कैसे
कैसा नादान है तू जब मिरा दिल तोड़ा था
ये न सोचा कि तुझे याद करेगा कैसे
आस्ताँ छोड़ के तेरा मैं कहीं का न रहा
बैठना आए न जिस को वो चलेगा कैसे
अब के शोहरत को ख़बर है तिरी बद-ख़़ूई की
मर्सिया दिल का तिरे आगे पड़ेगा कैसे
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