वहशत का कहीं असर नहीं है
वहशत का कहीं असर नहीं है
कुछ भी है ये मेरा घर नहीं है
ता-हद्द-ए-फ़लक खिंची है दीवार
दीवार में कोई दर नहीं है
आग़ाज़-ए-सफ़र में क़ाफ़िला था
अब एक भी हम-सफ़र नहीं है
कूफ़ा हो दमिशक़ हो मदीना
सादात का कोई घर नहीं है
वो, वो तो नहीं जो सामने था
मेरा है, मिरा मगर नहीं है
इस अहद की शनाख़्त ठहरी
सब कुछ है मगर नज़र नहीं है
जीने की तलब नहीं है 'शोहरत'
जीने से मगर मफ़र नहीं है
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