मैं ने ही न कुछ खोया जो पाया न किसी को
मैं ने ही न कुछ खोया जो पाया न किसी को
उस ने भी तो पूरा न किया मेरी कमी को
है मौजज़न इक क़ुल्ज़ुम-ए-ख़ूँ सीने में अब तक
दरकार नहीं और मिरी तिश्ना-लबी को
हँसते उन्हें देखा तो बहुत फूट के रोए
जो लोग तरसते रहे इक उम्र हँसी को
कुछ ऐसी तबीअत मिली हम अहल-ए-चमन को
बर्दाश्त किया है कभी शबनम न कली को
हर अश्क अजब गौहर-ए-यक-दाना है 'शोहरत'
गिर्या बड़ी दौलत है जो मिलती है किसी को
(654) Peoples Rate This