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जाने क्या बात है मानूस बहुत लगता है - शोहरत बुख़ारी कविता - Darsaal

जाने क्या बात है मानूस बहुत लगता है

जाने क्या बात है मानूस बहुत लगता है

ये जो इक ग़ैर सा इस बज़्म में आ बैठा है

उम्र-भर तू ने ज़माने का कहा माना है

दिल की आवाज़ भी सुन देख तो क्या कहता है

मिल भी जाए जो कोई नाव तो अब क्या हासिल

अब तो दरिया मिरे दरवाज़े पे आ पहुँचा है

उस ने दिल जान के छेड़ा उसे मा'लूम न था

मेरे पहलू में दहकता हुआ अँगारा है

मेरा जी जाने है या मेरा ख़ुदा जाने है

क्या सुना है तिरे इस शहर में क्या देखा है

हाए क्या दीदा-वरी है कि सहर-दम ये खुला

जिस को हम शम्अ' समझते रहे परवाना है

कोई रोए तो हँसो कोई हँसे तो रोओ

आज के दौर में जीने का यही रस्ता है

मेरे सीने में ख़ुनुक तीरगियाँ छोड़ गया

एक आईना कि सूरज की तरह जलता है

कोई बस्ती न कोई पेड़ न चश्मा कोई

क़ाफ़िला उम्र-ए-रवाँ का ये कहाँ उतरा है

जाह-ओ-मंसब की हवस हो तो मैं काफ़िर 'शोहरत'

मैं सग-ए-कू-ए-अली हूँ मेरा क्या कहना है

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In Hindi By Famous Poet Shohrat Bukhari. is written by Shohrat Bukhari. Complete Poem in Hindi by Shohrat Bukhari. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.