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जाने किस किस की तवज्जोह का तमाशा देखा - शोहरत बुख़ारी कविता - Darsaal

जाने किस किस की तवज्जोह का तमाशा देखा

जाने किस किस की तवज्जोह का तमाशा देखा

तोड़ कर आइना जब अपना ही चेहरा देखा

आ लगे गोर किनारे तो मिला मुज़्दा-ए-वस्ल

रात डूबी तो उभरता हुआ तारा देखा

एक आँसू में हुए ग़र्क़ दो-आलम के सितम

ये समुंदर तो तिरे ग़म से भी गहरा देखा

याद आता नहीं कुछ भी कि यहाँ दुनिया में

कौन सी चीज़ नहीं देखी मगर क्या देखा

इश्क़ के दाग़ हुए महव इस आशोब में सब

टिमटिमाता सा चराग़-ए-रुख़-ए-ज़ेबा देखा

इस ग़लत-बीनी का कोई तो नतीजा होता

उम्र भर बहर-ए-बला-ख़ेज़ को सहरा देखा

कोई इस ख़्वाब की ता'बीर बदल दे या-रब

घर में बहता हुआ इक ख़ून का दरिया देखा

खो गए भीड़ में दुनिया की पर अब तक 'शोहरत'

सनसना उट्ठा है जी जब कोई उन सा देखा

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In Hindi By Famous Poet Shohrat Bukhari. is written by Shohrat Bukhari. Complete Poem in Hindi by Shohrat Bukhari. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.