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मेरे क़दमों पर निगूँ मेरा ही सर है भी तो क्या - शोएब निज़ाम कविता - Darsaal

मेरे क़दमों पर निगूँ मेरा ही सर है भी तो क्या

मेरे क़दमों पर निगूँ मेरा ही सर है भी तो क्या

मेरे साए की ये साज़िश कारगर है भी तो क्या

तेरी ख़ुश-फ़हमी के इस आईना-ए-सद-रंग में

अक्स चेहरे से सिवा जाज़िब-नज़र है भी तो क्या

अपने मरकज़ से जुदा हो कर अगर ये फ़िक्र-ए-नौ

दायरा-दर-दायरा गर्म-ए-सफ़र है भी तो क्या

ज़हर की कोहना रिवायत ही का डर डस जाएगा

जिस्म से लिपटी ये नागिन बे-ज़रर है भी तो क्या

मेहरबाँ क़तरों की बारिश अब्र-ए-आइंदा में है

फ़स्ल-ए-इम्काँ अब के मौसम बे-समर है भी तो क्या

सैर-ए-ला-सम्ती से भी ला-हासिली का लुत्फ़ ले

रेग-ए-सहरा बे-सदा ओ बे-समर है भी तो क्या

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In Hindi By Famous Poet Shoaib Nizam. is written by Shoaib Nizam. Complete Poem in Hindi by Shoaib Nizam. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.