ख़ुशी में ग़म मिला लेते हैं थोड़ा
ख़ुशी में ग़म मिला लेते हैं थोड़ा
ये सरमाया बढ़ा लेते हैं थोड़ा
नज़र आते हैं जब अतराफ़ छोटे
हम अपना क़द घटा लेते हैं थोड़ा
है अंदर रौशनी बाहर अंधेरा
सो दोनों को मिला लेते हैं थोड़ा
बहुत बे-रब्त है अंदर की दुनिया
चलो पर्दा उठा लेते हैं थोड़ा
बहुत सा ख़र्च हो जाता है ईमाँ
मगर फिर भी बचा लेते हैं थोड़ा
ये चेहरे दिल के बाशिंदे हैं साहब
ये नज़राना जुदा लेते हैं थोड़ा
सुनो दुनिया के नक़्शे से किसी दिन
समुंदर को हटा लेते हैं थोड़ा
दो आलम आग बन जाते हैं जब भी
हम अश्कों से बुझा लेते हैं थोड़ा
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