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दरों को चुनता हूँ दीवार से निकलता हूँ - शोएब निज़ाम कविता - Darsaal

दरों को चुनता हूँ दीवार से निकलता हूँ

दरों को चुनता हूँ दीवार से निकलता हूँ

मैं ख़ुद को जीत के इस हार से निकलता हूँ

तुझे शनाख़्त नहीं है मिरे लहू की क्या

मैं रोज़ सुब्ह के अख़बार से निकलता हूँ

मिरी तलाश में उस पार लोग जाते हैं

मगर मैं डूब के इस पार से निकलता हूँ

अजीब ख़ौफ़ है दोनों को क्या किया जाए

मैं क़द में अपने ही सरदार से निकलता हूँ

अब आगे फ़ैसला क़िस्मत पे छोड़ के मैं भी

तिलिस्म-ए-साबित-ओ-सय्यार से निकलता हूँ

सुनी है मैं ने किसी सम्त से वही आवाज़

सुनो मैं गर्दिश-ए-परकार से निकलता हूँ

मिरी तलाश में वो भी ज़रूर आएगा

सो मैं भी चश्म-ए-ख़रीदार से निकलता हूँ

नतीजा जो भी हो जा-ए-अमाँ मिले न मिले

मैं अब ख़राबा-ए-पुरकार से निकलता हूँ

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In Hindi By Famous Poet Shoaib Nizam. is written by Shoaib Nizam. Complete Poem in Hindi by Shoaib Nizam. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.