अगर सुने तो किसी को यक़ीं नहीं आए
अगर सुने तो किसी को यक़ीं नहीं आए
मकाँ बुलाते रहे और मकीं नहीं आए
वो चंद लफ़्ज़ जो कुछ भी नहीं सिवा सच के
वो चंद लफ़्ज़ बयाँ में कहीं नहीं आए
तो क्या हुआ जो ये तन मिल रहे हैं मिट्टी में
अभी वो ख़्वाब तो ज़ेर-ए-ज़मीं नहीं आए
अभी से नाज़ न कर इतना ख़ुश-लिबासी पर
अभी तो बज़्म में वो नुक्ता-चीं नहीं आए
किसी की आँख में रौशन हैं जैसी ताबीरें
इधर तो ख़्वाब भी इतने हसीं नहीं आए
(584) Peoples Rate This