अब उदास फिरते हो सर्दियों की शामों में
इस तरह तो होता है इस तरह के कामों में
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एक ज़र्रा भी न मिल पाएगा मेरा मुझ को
दिल-ए-आबाद का बर्बाद भी होना ज़रूरी है
दोस्ती का दावा क्या आशिक़ी से क्या मतलब
ग़ुंचा चटका था कहीं ख़ातिर-ए-बुलबुल के लिए