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दिल-ए-आबाद का बर्बाद भी होना ज़रूरी है - शोएब बिन अज़ीज़ कविता - Darsaal

दिल-ए-आबाद का बर्बाद भी होना ज़रूरी है

दिल-ए-आबाद का बर्बाद भी होना ज़रूरी है

जिसे पाना ज़रूरी है उसे खोना ज़रूरी है

मुकम्मल किस तरह होगा तमाशा बर्क़-ओ-बाराँ का

तिरा हँसना ज़रूरी है मिरा रोना ज़रूरी है

बहुत सी सुर्ख़ आँखें शहर में अच्छी नहीं लगतीं

तिरे जागे हुओं का देर तक सोना ज़रूरी है

किसी की याद से इस उम्र में दिल की मुलाक़ातें

ठिठुरती शाम में इक धूप का कोना ज़रूरी है

ये ख़ुद-सर वक़्त ले जाए कहानी को कहाँ जाने

मुसन्निफ़ का किसी किरदार में होना ज़रूरी है

जनाब-ए-दिल बहुत नाज़ाँ न हों दाग़-ए-मोहब्बत पर

ये दुनिया है यहाँ ये दाग़ भी धोना ज़रूरी है

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In Hindi By Famous Poet Shoaib Bin Aziz. is written by Shoaib Bin Aziz. Complete Poem in Hindi by Shoaib Bin Aziz. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.