ख़ून-ए-दिल होता रहा ख़ून-ए-जिगर होता रहा
ख़ून-ए-दिल होता रहा ख़ून-ए-जिगर होता रहा
ये तमाशा इश्क़ में शाम-ओ-सहर होता रहा
इस जहान-ए-आब-ओ-गिल में यूँ बसर होती रही
मुस्कुराते भी रहे दामन भी तर होता रहा
आरज़ुओं को तड़प कर नींद सी आती गई
क़िस्सा-ए-बीमार-ए-ग़म यूँ मुख़्तसर होता रहा
इन की बातों पर यक़ीं हम उमर भर करते रहे
इंतिज़ार-ए-शाम-ए-वादा उम्र भर होता रहा
तल्ख़ी-ए-ग़म से न पल भर के लिए फ़ुर्सत मिली
उम्र भर गो चारा-ए-दर्द-ए-जिगर होता रहा
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