नुमूद-ए-रंग से बेगाना-वार आई है
नुमूद-ए-रंग से बेगाना-वार आई है
ख़िज़ाँ का भेस बदल कर बहार आई है
मलूल-ओ-मुज़्महिल-ओ-बे-क़रार आई है
कोई बताए ये कैसी बहार आई है
असीर-ए-ख़ाना-ए-गुल्चीं हैं रंग-ओ-बू ऐ दोस्त
ये किस के अहद में ऐसी बहार आई है
सुहाग अध-खिली कलियों का किस ने लूट लिया
बहार किस लिए यूँ सोगवार आई है
चमन फ़सुर्दा गुल आज़ुर्दा ग़ुंचे पज़मुर्दा
ख़िज़ाँ बहार पे है या बहार आई है
न बर्ग-ओ-गुल की तमन्ना न रंग-ओ-बू की हवस
'सहाब' मुझ को ख़िज़ाँ साज़-गार आई है
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