नज़र बहार न देखे तो बे-क़रार न हो
नज़र बहार न देखे तो बे-क़रार न हो
ख़िज़ाँ सुकून से गुज़रे अगर बहार न हो
निगाह-ए-दिल में जो रंगीनी-ए-बहार न हो
गुनाहगार-ए-तमाशा गुनाहगार न हो
फ़रेब-ए-निकहत-ओ-रंग आगही शिकार न हो
करिश्मा-कार-ए-चमन में अगर बहार न हो
ख़िज़ाँ के जौर-ए-मुसलसल पे बे-क़रार न हो
बहार देख मगर ख़ूगर-ए-बहार न हो
बजा है ग़ुंचे का जोश-ए-नुमू से खिल उठना
जो गुल पे आई वो गुज़री हुई बहार न हो
मिरा शुऊ'र-ए-बहाराँ ख़िज़ाँ पे ग़श हो 'सहाब'
अगर वो नक़्स-ए-बहाराँ की यादगार न हो
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