अंदोह-ए-बेश-ओ-कम न ग़म-ए-ख़ैर-ओ-शर में है
अंदोह-ए-बेश-ओ-कम न ग़म-ए-ख़ैर-ओ-शर में है
राज़-ए-हयात वुसअ'त-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र में है
वो मस्ती-ए-नज़र है उसी दिल की पासदार
जो दिल ब-रू-ए-कार गुनाह-ए-नज़र में है
उस का ख़याल उस का तसव्वुर उसी की याद
कोई नहीं नज़र में वो जब से नज़र में है
कैफ़ आश्ना थी ज़ीस्त कभी जिस की दीद से
वो चश्म-ए-मस्त आज भी मेरी नज़र में है
कैसा तिलिस्म-ए-हुस्न है उस जल्वा-गाह में
जल्वा नज़र में है कभी पर्दा नज़र में है
क्या शय अता-ए-ग़म की है कैफ़िय्यत ऐ 'सहाब'
ख़ल्वत हरीम-ए-दिल में है महफ़िल नज़र में है
(490) Peoples Rate This