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सर-ए-तुर्बत कहीं इक हुस्न की तस्वीर देखी है - शिव चरन दास गोयल ज़ब्त कविता - Darsaal

सर-ए-तुर्बत कहीं इक हुस्न की तस्वीर देखी है

सर-ए-तुर्बत कहीं इक हुस्न की तस्वीर देखी है

अरे ओ मरने वाले यूँ तिरी तक़दीर देखी है

सुलगती आग के दरिया किए तय डूब कर मैं ने

तड़पती ज़िंदगी से बाज़ी-ए-शमशीर देखी है

न बहलाएँ मुझे अब झूटे वा'दों से मिरे रहबर

बहुत कुछ आज तक उन की रह-ए-तदबीर देखी है

पहाड़ों को हिला दे मुंक़लिब कर दे ज़मानों को

नज़र ने वो सदा-ए-हल्क़ा-ए-ज़ंजीर देखी है

बना दे मुझ से जैसे ना-बलद को भी जो इक शाइ'र

वो मैं ने हज़रत-ए-'मख़मूर' में तासीर देखी है

ग़रीबी मुफ़्लिसी बेचारगी ग़म की हिरासानी

ब-अंदाज़-ए-जली हर सम्त ये तहरीर देखी है

जो आहन मोम कर दे और पत्थर को भी पिघला दे

जनाब-ए-'ज़ब्त' की बातों में वो तासीर देखी है

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In Hindi By Famous Poet Shiv Charan Das Goyal Zabt. is written by Shiv Charan Das Goyal Zabt. Complete Poem in Hindi by Shiv Charan Das Goyal Zabt. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.