न है उस को मुझ से ग़फ़लत न वो ज़िम्मेदार कम है
न है उस को मुझ से ग़फ़लत न वो ज़िम्मेदार कम है
प अलग है उस की फ़ितरत वो वफ़ा-शिआर कम है
मिरी हसरतें मिटेंगी मिरे ख़्वाब होंगे पूरे
मुझे अपने इस यक़ीं पर ज़रा ए'तिबार कम है
न बढ़ाए और दूरी कोई आने वाला मौसम
चलो फ़ासले मिटा लें कि अभी दरार कम है
ये तुम ही पे मुनहसिर है कि तुम आओ या न आओ
मैं भला ये कैसे कह दूँ मुझे इंतिज़ार कम है
यही चाहते थे हम भी कि न राज़-ए-दिल अयाँ हो
मगर अपने आँसुओं पर हमें इख़्तियार कम है
वो उठा था एक तूफ़ाँ जो मचा गया तबाही
अभी आँधियाँ थमी हैं तो अभी ग़ुबार कम है
कहीं खो गए तसव्वुर जो बिखर गया तख़य्युल
तो 'शिफ़ा' ये कैसे कह दे कि वो बे-क़रार कम है
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