मोहब्बत मअ'नी ओ अल्फ़ाज़ में लाई नहीं जाती
ये वो नाज़ुक हक़ीक़त है जो समझाई नहीं जाती
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ये बाज़ी मोहब्बत की बाज़ी है नादाँ
अभी तो दिल में हल्की सी ख़लिश महसूस होती है
क़यामत है ये कह कर उस ने लौटाया है क़ासिद को
सोज़-ए-अलम से दूर हुआ जा रहा हूँ मैं
क़यामत है ये कह के उस ने लौटाया है क़ासिद को
तमन्ना है यही दिल की वहीं चलिए वहीं चलिए
ज़हे-ए-कोशिश-ए-कामयाब-ए-मोहब्बत
ग़ज़ब है जुस्तजू-ए-दिल का ये अंजाम हो जाए
हंगामा है न फ़ित्ना-ए-दौराँ है आज-कल
उस नज़र की शराब पीता हूँ
बराबर ख़फ़ा हों बराबर मनाएँ