वो हद से दूर होते जा रहे हैं
वो हद से दूर होते जा रहे हैं
बड़े मग़रूर होते जा रहे हैं
बसे हैं जब से वो मेरी नज़र में
सरापा नूर होते जा रहे हैं
जो फूटे आबले दिल की ख़लिश से
वो अब नासूर होते जा रहे हैं
बहुत मुश्किल है मंज़िल तक रसाई
वो कोसों दूर होते जा रहे हैं
कहाँ पहली सी राह-ओ-रस्म-ए-उल्फ़त
नए दस्तूर होते जा रहे हैं
हमारे दाग़-ए-दिल राह-ए-तलब में
चराग़-ए-तूर होते जा रहे हैं
ख़ुदा-हाफ़िज़ है अब बादा-कशों का
नशे में चूर होते जा रहे हैं
पिला दे साक़िया बादा-कशों को
नशे काफ़ूर होते जा रहे हैं
क़रीब-ए-दिल वो क्या ऐ 'नाज़' आए
नज़र से दूर होते जा रहे हैं
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