नुत्क़ पलकों पे शरर हो तो ग़ज़ल होती है
नुत्क़ पलकों पे शरर हो तो ग़ज़ल होती है
आस्तीं आग से तर हो तो ग़ज़ल होती है
हिज्र में झूम के विज्दान पे आता है निखार
रात सूली पे बसर हो तो ग़ज़ल होती है
कोई दरिया में अगर कच्चे घड़े पर तैरे
साथ साथ इस के भँवर हो तो ग़ज़ल होती है
मुद्दत-ए-उम्र है मतलूब रियाज़त के लिए
ज़िंदगी बार-ए-दिगर हो तो ग़ज़ल होती है
लाज़मी है कि रहें ज़ेर-ए-नज़र ग़ैब ओ हुज़ूर
दोनों आलम की ख़बर हो तो ग़ज़ल होती है
क़ाब क़ौसैन की अरमान-ए-पयम्बर की क़सम
हुस्न चिलमन के उधर हो तो ग़ज़ल होती है
हाथ लगते हैं फ़लक ही से मज़ामीं 'अफ़ज़ल'
दिल में जिब्रील का पर हो तो ग़ज़ल होती है
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