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नुत्क़ पलकों पे शरर हो तो ग़ज़ल होती है - शेर अफ़ज़ल जाफ़री कविता - Darsaal

नुत्क़ पलकों पे शरर हो तो ग़ज़ल होती है

नुत्क़ पलकों पे शरर हो तो ग़ज़ल होती है

आस्तीं आग से तर हो तो ग़ज़ल होती है

हिज्र में झूम के विज्दान पे आता है निखार

रात सूली पे बसर हो तो ग़ज़ल होती है

कोई दरिया में अगर कच्चे घड़े पर तैरे

साथ साथ इस के भँवर हो तो ग़ज़ल होती है

मुद्दत-ए-उम्र है मतलूब रियाज़त के लिए

ज़िंदगी बार-ए-दिगर हो तो ग़ज़ल होती है

लाज़मी है कि रहें ज़ेर-ए-नज़र ग़ैब ओ हुज़ूर

दोनों आलम की ख़बर हो तो ग़ज़ल होती है

क़ाब क़ौसैन की अरमान-ए-पयम्बर की क़सम

हुस्न चिलमन के उधर हो तो ग़ज़ल होती है

हाथ लगते हैं फ़लक ही से मज़ामीं 'अफ़ज़ल'

दिल में जिब्रील का पर हो तो ग़ज़ल होती है

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In Hindi By Famous Poet Sher Afzal Jafri. is written by Sher Afzal Jafri. Complete Poem in Hindi by Sher Afzal Jafri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.