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न खींचो आशिक़-तिश्ना-जिगर के तीर पहलू से - ज़ौक़ कविता - Darsaal

न खींचो आशिक़-तिश्ना-जिगर के तीर पहलू से

न खींचो आशिक़-तिश्ना-जिगर के तीर पहलू से

निकाले पर है मिस्ल-ए-माही-ए-तस्वीर पहलू से

न ले ऐ नावक-अफ़गन दिल को मेरे चीर पहलू से

कि वो तो जा चुका साथ आह के जूँ तीर पहलू से

दिल-ए-सीपारा को ले टाँक तावीज़ों में हैकल के

न सरका ये हमाइल ऐ बुत-ए-बे-पीर पहलू से

वो हों बे-दस्त-ओ-पा बिस्मिल रसाई जब न हाथ आई

किया ता पा-ए-क़ातिल अज़ तह-ए-शमशीर पहलू से

असीर-ए-ज़ुल्फ़ दीवाने हैं देख ऐ पासबाँ शब को

दबा कर बैठ उन के पाँव की ज़ंजीर पहलू से

मुसव्विर लैला ओ मजनूँ की नाकामी पे हैराँ हैं

कभी बैठा न मिल कर पहलू-ए-तस्वीर पहलू से

ये दिल लब-तिश्ना तेग़-ए-यार का है रात भर करता

सदा-ए-अल-अतश जूँ नाला-ए-शब-गीर पहलू से

अजब हसरत का आलम था कि मजनूँ कहता था पैहम

छुटे पहलू मिरे महमिल का या तक़दीर पहलू से

न कहना उस्तुख़्वाँ उन को ये आलम लाग़री का है

कि है दिखला रहा मेरा दिल-ए-दिल-गीर पहलू से

ख़याल-ए-अबरू-ए-जानाँ नहीं अब भूलता इक दम

सिपाही है जुदा करता नहीं शमशीर पहलू से

तमाम अहल-ए-सुख़न बज़्म-ए-सुख़न में 'ज़ौक़' हैराँ हैं

मिला जो क़ाफ़िया तू ने किया तहरीर पहलू से

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In Hindi By Famous Poet Sheikh Ibrahim Zauq. is written by Sheikh Ibrahim Zauq. Complete Poem in Hindi by Sheikh Ibrahim Zauq. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.