न करता ज़ब्त मैं नाला तो फिर ऐसा धुआँ होता

न करता ज़ब्त मैं नाला तो फिर ऐसा धुआँ होता

कि नीचे आसमाँ के और पैदा आसमाँ होता

कहे है मुर्ग़-ए-दिल ऐ काश में ज़ाग़-ए-कमाँ होता

कि ता शाख़-ए-कमाँ पर उस की मेरा आशियाँ होता

अभी क्या सर्द क़ातिल ये शहीद-ए-तुफ़्ता-जाँ होता

कोई दम शम-ए-मुर्दा में भी है बाक़ी धुआँ होता

न होती दिल में काविश गर किसी की नोक-ए-मिज़्गाँ की

तो क्यूँ हक़ में मिरे हर मू-ए-तन मिस्ल-ए-सिनाँ होता

अज़ा-दारी में है किस की ये चर्ख़-ए-मातमी-जामा

कि हबीब-ए-चाक की सूरत है ख़त्त-ए-कहकहशाँ होता

बगूला गर न होता वादी-ए-वहशत में ऐ मजनूँ

तो गुम्बद हम से सर-गश्तों की तुर्बत पर कहाँ होता

जो रोता खोल कर दिल तंगना-ए-दहर में आशिक़

तो जू-ए-कहकहशाँ में भी फ़लक पर ख़ूँ रवाँ होता

न रखता गर न रखता मुँह पे ये दाना मरीज़-ए-ग़म

मगर तेरा मयस्सर बोसा-ए-ख़ाल-ए-दहाँ होता

तिरे ख़ूनीं जिगर की ख़ाक पर होता अगर सब्ज़ा

तो मिज़्गाँ की तरह उस से भी पैहम ख़ूँ रवाँ होता

रुकावट दिल की उस काफ़िर के वक़्त-ए-ज़ब्ह ज़ाहिर है

कि ख़ंजर मेरी गर्दन पर है रुक रुक कर रवाँ होता

न करता ज़ब्त मैं गिर्या तो ऐ 'ज़ौक़' इक घड़ी भर में

कटोरे की तरह घड़ियाल के ग़र्क़ आसमाँ होता

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In Hindi By Famous Poet Sheikh Ibrahim Zauq. is written by Sheikh Ibrahim Zauq. Complete Poem in Hindi by Sheikh Ibrahim Zauq. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.