Coupletss of Sheikh Ibrahim Zauq (page 2)
नाम | ज़ौक़ |
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अंग्रेज़ी नाम | Sheikh Ibrahim Zauq |
जन्म की तारीख | 1790 |
मौत की तिथि | 1854 |
जन्म स्थान | Delhi |
मालूम जो होता हमें अंजाम-ए-मोहब्बत
लेते हैं समर शाख़-ए-समरवर को झुका कर
लाई हयात आए क़ज़ा ले चली चले
क्या जाने उसे वहम है क्या मेरी तरफ़ से
क्या देखता है हाथ मिरा छोड़ दे तबीब
कितने मुफ़लिस हो गए कितने तवंगर हो गए
ख़त बढ़ा काकुल बढ़े ज़ुल्फ़ें बढ़ीं गेसू बढ़े
कल जहाँ से कि उठा लाए थे अहबाब मुझे
जो पास-ए-मेहर-ओ-मोहब्बत कहीं यहाँ बिकता
जो कहोगे तुम कहेंगे हम भी हाँ यूँ ही सही
इन दिनों गरचे दकन में है बड़ी क़द्र-ए-सुख़न
हम रोने पे आ जाएँ तो दरिया ही बहा दें
हम नहीं वो जो करें ख़ून का दावा तुझ पर
हो उम्र-ए-ख़िज़्र भी तो हो मालूम वक़्त-ए-मर्ग
हक़ ने तुझ को इक ज़बाँ दी और दिए हैं कान दो
हमें नर्गिस का दस्ता ग़ैर के हाथों से क्यूँ भेजा
है ऐन-ए-वस्ल में भी मिरी चश्म सू-ए-दर
गुल उस निगह के ज़ख़्म-रसीदों में मिल गया
गया शैतान मारा एक सज्दा के न करने में
एक पत्थर पूजने को शैख़ जी काबे गए
एक आँसू ने डुबोया मुझ को उन की बज़्म में
एहसान ना-ख़ुदा का उठाए मिरी बला
दुनिया ने किस का राह-ए-फ़ना में दिया है साथ
दुकान-ए-हुस्न में मिलती नहीं मता-ए-वफ़ा
दिखाने को नहीं हम मुज़्तरिब हालत ही ऐसी है
देख छोटों को है अल्लाह बड़ाई देता
बोसा जो रुख़ का देते नहीं लब का दीजिए
बे-क़रारी का सबब हर काम की उम्मीद है
बेहतर तो है यही कि न दुनिया से दिल लगे
बाक़ी है दिल में शैख़ के हसरत गुनाह की