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दख़्ल हर दिल में तिरा मिस्ल-ए-सुवैदा हो गया - शैख़ अली बख़्श बीमार कविता - Darsaal

दख़्ल हर दिल में तिरा मिस्ल-ए-सुवैदा हो गया

दख़्ल हर दिल में तिरा मिस्ल-ए-सुवैदा हो गया

अल-अमाँ ऐ ज़ुल्फ़-ए-आलम-गीर सौदा हो गया

गो पड़ा रहता हूँ आब-ए-अश्क में मिस्ल-ए-हबाब

सोज़िश-ए-दिल से मगर सब जिस्म छाला हो गया

ऐ शह-ए-ख़ूबाँ तसव्वुर से तिरे रुख़्सार के

चश्म का पर्दा बे-ऐनिहि लाल-ए-पर्दा हो गया

फ़र्क़-ए-रिंदान-ओ-मलाइक अब बहुत दुश्वार है

मय-कदा उस के क़दम से रौशन ऐसा हो गया

दाना-ए-अँगूर अख़्तर चाँदनी मय माह जाम

नस्र-ए-ताएर बत क़राबा चर्ख़ मीना हो गया

सुनते हैं ताइब हुआ उस बुत के घर जाने से तू

क्या तिरा 'बीमार' पत्थर का कलेजा हो गया

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In Hindi By Famous Poet Sheikh Bimar Ali Bakhsh. is written by Sheikh Bimar Ali Bakhsh. Complete Poem in Hindi by Sheikh Bimar Ali Bakhsh. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.