इस क़दर ख़ुद पे हम जफ़ा न करें
इस क़दर ख़ुद पे हम जफ़ा न करें
जिस्म को जान से जुदा न करें
अश्क अज़ चश्म-ए-मन जुदा नशिवद
आप ऐसी कभी दुआ न करें
आओ अहद-ए-वफ़ा करें दोनों
और अहद-ए-वफ़ा वफ़ा न करें
फूल बन कर महकने लगते हैं
आप ज़ख़्मों को यूँ छुआ न करें
दूर माना ज़मीन है उस से
आसमाँ से मगर कहा न करें
और भी कुछ मज़ीद दहकेगी
आग को यूँ हवा दिया न करें
कैसे भूलेंगे मुझ को उन से कहो
ज़िक्र इतना मिरा किया न करें
हम भी इंसान हैं फ़रिश्ते नहीं
ये तो मुमकिन नहीं ख़ता न करें
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