रेख़्ता का इक नया मज्ज़ूब है 'शहपर' रसूल
शोहरत उस के नाम पर इक नंग है बोहतान है
Jaun Eliya
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न कोई ख़्वाब न माज़ी ही मेरे हाल के पास
दूसरों के ज़ख़्म बुन कर ओढ़ना आसाँ नहीं
होगी इस ढेर इमारत की कहानी कुछ तो
सुख़न किया जो ख़मोशी से शायरी जागी
हँसते हुए हुरूफ़ में जिस को अदा करूँ
ज़हर-ए-शब वीरान बिस्तर ऐ ख़ुदा
मस्लहत के ज़ावियों से किस क़दर अंजान है
हम ज़िंदगी-शनास थे सब से जुदा रहे
मुझे भी लम्हा-ए-हिजरत ने कर दिया तक़्सीम
चुप गुज़र जाता हूँ हैरान भी हो जाता हूँ
कोई साया न कोई हम-साया