सुख़न किया जो ख़मोशी से शायरी जागी
सुख़न किया जो ख़मोशी से शायरी जागी
चराग़ लफ़्ज़ों के जल उट्ठे रौशनी जागी
ज़िद-ए-मलाल-ओ-मसर्रत में उम्र बीत गई
ये देव सोया न वो ख़्वाब की परी जागी
तू बर्फ़ दर्द समुंदर में इज़्तिराब आया
तो ख़ुश्क-चश्म जज़ीरे में कुछ नमी जागी
वहाँ ज़बाँ पे समुंदर की ख़ुश्कियाँ उभरीं
यहाँ ज़मीन के होंटों पे कुछ हँसी जागी
नज़र नज़र में समाईं हलावतें 'शहपर'
ख़याल-ए-लम्स-ओ-नज़ारा में सरख़ुशी जागी
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