तंग थी जा ख़ातिर-ए-नाशाद में
तंग थी जा ख़ातिर-ए-नाशाद में
आप को भूले हम उन की याद में
क्यूँकर उठता है ख़ुदा रंज-ए-क़फ़स
मर गए हम तो कफ़-ए-सैय्याद में
वो जो हैं तारीख़ से वाक़िफ़ बताएँ
फ़र्क़ बाद-ए-आह ओ बाद-ए-आद में
याँ उम्मीद-ए-क़त्ल ही ने ख़ूँ किया
रह गई हसरत दिल-ए-जल्लाद में
बे-तअल्लुक़-पन भी आख़िर क़ैद है
क़ैद पाई ख़ातिर-ए-आज़ाद में
ग़म्ज़ा-ए-शीरीं ही की दौलत से था
जो असर था तेशा-ए-फ़रहाद में
क्यूँ ख़बर पूछी तिरा बीमार हाए
मर गया शोर-ए-मुबारकबाद में
बे-तकल्लुफ़ जी में जो आए करो
क्या धरा है नाला-ओ-फ़रियाद में
ध्यान तुझ को हो न हो पर 'शेफ़्ता'
रात दिन रहता है तेरी याद में
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